नदी के किनारे
नदी के किनारे
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तेरा हाथ पकड़ कर मैं
नदिया में उतरा था।
पतवार थमाई थी तुमको
तेरा ही एक सहारा था।।
बीच भंवर में छोड़ दिया
बस तेरा एक सहारा था।
पता नहीं था कि नदिया
का कितना दूर किनारा था।।
आश लगाई थी मैंने तुम
साथ निभाओगे मेरा।
इतनी जल्दी क्यों चले गए
क्या साथ नहीं भाया मेरा।।
तुम तो मेरे दीपक थे था
प्रेम का तेल भरा मैंने।
वर्तिका बनी मैं दीपक की
जलने का वादा किया मैंने।।
बीच भंवर में नौका को क्यों
छोड़ गए प्यारे प्रियतम।
तेरी ही दम से हम जिन्दा थे
अब कैसे जिऊंगी मैं प्रियतम।।
मांझी क्या अपनी नौका को
ऐसे छोड़ कर जाता है।
नौका उसका जीवन साथी
नदिया के किनारे ले जाता है।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Gunjan Kamal
13-Feb-2023 10:45 AM
शानदार
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डॉ. रामबली मिश्र
05-Feb-2023 09:44 PM
बहुत खूब
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सीताराम साहू 'निर्मल'
04-Feb-2023 10:56 PM
शानदार
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